तेजाब -- एक दर्दनाक पागलपन
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लक्ष्मी अगरवाल (दाएं)और छपाक पिक्चर में उनका अभिनय करने वाली दीपिका पादुकोण |
अब मेरे इस लेख के आप सभी पाठकगण यह सोच रहे होंगे और आप सभी के मन
में यह सवाल अवश्य उत्पन्न हो रहा होगा कि मैंने मुद्दा तो उठा दिया कि यह गलत है
परन्तु इस घटना के रोकथाम या इस विषय कि वर्तमान स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए क्या क्या कदम उठाय जा
सकते हैं.....तो जी हाँ पाठक गणों अब मैं आप सभी का ध्यान उसी ओर आकर्षित करना
चाहूंगी
सबसे पहले तो जो कार्य सबसे पहले करना है वो है इसके बिकने पर पूर्णतः रोक,जो कि सरकार द्वारा कई बार आदेश करने के बावजूद भी आसानी से उपलब्ध हो जाता है....तो सरकार कोई एस नियम लाए जिससे कि इसकी बिक्री ही बंद हो जाए पूर्णत...जिससे कि ना केवल इसकी उपलब्धता ना के बराबर होजाएगी बल्कि तेजाब फेंकने कि खबरों में भी घटोतरी होगी......
दूसरा कदम जो भी व्यक्ति यह कार्य करता है,उसकी सजा----जहाँ तक मेरा ज्ञान है तो एसी घटनाओं को करने वालों को कानून कि किताबों के अनुसार मात्र जी हाँ मात्र 10 साल कि सजा देने का प्रावधान है.अब आप यह बताएं कि यह कैसा न्याय है हमारे देश का ?यह कैसा कानून है?यह तो सचमुच एक अँधा कानून है....ज़रा एक बार खुद सोचिये जो पीड़ित है इस तेजाब फेंके जाने कि घटना से उसका तो पूरा जीवनयापन ही कठिन होगया और आरोपी को मात्र 10 साल कि जेल जिसमे भी वह कितनी बार bail पर बाहर आजाता है कभी किसी बहाने से तो कभी किसी बहाने से......तो दूसरा महत्वपूर्ण कदम जो सरकार को उठाने कि आवश्यकता है वो है इसकी सजा में पूर्णतः परिवर्तन......तेजाब फेंकना हो या rape जैसी घटनाओं का आरोपी हो सजा होनी चाहिए तो मात्र एक फांसी जी हाँ सीधा फाँसी क्यूंकि इन दोनों ही घटनाओं के बाद पीडिता एवं उसके परिवारजनों खासकर कि मातापिता का जीवन बेहद ही कठिन हो जाता है.....हमारे समाज कि एक और बुरे यह है कि ऐसी स्तिथि मेंजिनलोगो पीडिता के साथ खड़ा होना चाहिए वही अपने मन सम्मान इज्ज़त और प्रतिष्ठा के लिए सबसे पहले साथ छोड़ देते हैं...जी हाँ मैं बात कर रही हूँ रिश्तेदारों की....उन्हें इस स्तिथि में भी एक ही कार्य करना योग्य लगता है वो है ताने मारना और ताने भी तो कैसे कि और छूट दो बेटी को और घुमने दो लडको के साथ यही होगा......अब कैसे होगी इसकी शादी...और ना जाने क्या क्या.....वह एक भी बार पीडिता और उसके मातापिता कि मनोस्तिथि के बारे में नहीं सोचते.....तो जब अपने ही साथ छोड़ देते हैं तो फिर कानून से पीडिता कि उम्मीदें जुड़ी होती हैं जो मात्र दस साल में ही ऐसे दरिंदो को रिहा करने का उपाय रखता है!!!!!!!!!!!
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